Monday 6 May 2013

Ashtaanga Yoga अष्टांग योग

I NEITHER ENDORSE NOR OBJECT TO THE VIEWS EXPRESSED IN THIS BLOG. THEY ARE SIMPLY COLLECTED AT ONE PLACE

We normally think of some exercises or taking peculiar poses by the word 'Yoga'. However, it consists of Eight parts encompassing all facets of our activities. I do not think it is achievable by an ordinary human being to practice all of them all the time, but we can try to some extent.

इस लेखमें या इस ब्लॉगमे दिये गये विचारोंका मै ना समर्थन करता हूँ, ना विरोध। मेरे पत्रकोशिकामें (लेटरबॉक्स) मुझे जो पत्र मिले उनमेसे कुछ पत्र मैने इस जगह इकठ्ठे किये हैं।

'योग' इस शब्दका 'शारीरिक कसरत' यह अर्थ सभी लोग जानते हैं, मगर इसमें बहुत सारी विधियाँ शामिल हैं इसका एहसास आम आदमीको नहीं होता। अपनी रोजी रोटी कमाकर अपना जीवनयापन करते हुवे कोईभी
सामान्य मनुष्य ये सभी कर सके यह मुझे तो नामुमकिन लगता है। हम कुछ हद तक कोशिश कर सकते हैं।
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अष्टांग योग


योग सिर्फ एक कसरत नहीं जो एक घंटे कर के भूल जाए।  योग जीवन की एक कला है, जिसे अपना कर हम मानव जन्म को सार्थक बना सकते है। .पतंजलि ऋषि के अनुसार योग के आठ अंग है जिन्हें हमें एक एक
अपनाने का प्रयास करना चाहिए। ये हैः
१. यम -- इसमें आते है
* सत्य - हमें कभी भी झूठ बोलने का विचार भी मन नहीं आने देना है।
* अहिंसा - किसी के लिए बुरा सोचना मात्र ही हिंसा होती है। उसके लिए बुरा बोलना भी हिंसा है और मारना तो बहुत बड़ा पाप है।  स्मरण रहे एक सुक्ष्म विचार बहुत शक्तिशाली होरमोन बनाता है।
* अस्तेय -- दुसरे की कोई वस्तु ले लेने का विचार भी मन आ गया तो यह विचार कुछ रसायन रक्त में बनाता है, जो पूरी सिस्टम को गड़बड़ कर सकता है।
* ब्रम्हचर्य - सदा ब्रम्ह में आचरण करना। अर्थात हमें सदैव ये स्मरण रहना चाहिए की हम शारीर नहीं आत्मा है और परमात्मा ने हमें इस सृष्टि में किसी उद्देश्य से बनाया है। बुरे विचार मन में ना आने पाए और ना ही
ऐसे दृश्य देखें, जो आज के माहौल में कुछ असंभव सा लगता है; पर है नहीं।
* अपरिग्रह -- हमें अपने ज़रुरत के जितना धन रख कर बाकी ज़रूरतमंद लोगों को दे देना चाहिए। परमार्थ ही मानव जन्म को अर्थपूर्ण बनाता है। आज जीवन भर मनुष्य सिर्फ खुद के लिए जीता है और इकट्ठा करते
जाता है।

२.नियम --इसमें आते है
* शौच - शारीरिक और मानसिक स्वच्छता
* संतोष - हमने जो प्राप्त किया पहले उसको जी ले।
* तप - जीवन में कुछ पाने के लिए त्याग करें।
* स्वाध्याय -- रोज़ कुछ अच्छा साहित्य पढ़ें और उसे सोचे और उसे जीवन में उतारे।
* ध्यान - हम जो भी काम करे ध्यान से करें। मन कही और हम कहीं ये सही नहीं।

३. आसन -- योगासनों के बारे में सभी जानते है .
४. प्राणायाम - रोज़ ८० % प्राणायाम करें २० % आसन। प्राण ही जीवन का आधार है। इस पर नियंत्रण ही जीवन पर नियंत्रण है।
५. प्रत्याहार - हमें क्या देखना है; क्या सुनना है; क्या बोलना है; क्या खाना है, क्या पहनना है, इस पर हमारा नियंत्रण रहे। हम किसी और के वश में ना रहे।
६. धारणा - कोई आसन करते समय, या कोई काम करते समय किसी एक अंग या उस काम पर ही ध्यान रहना धारणा कहलाता है।
७ .ध्यान - किसी मंत्र उच्चारण के साथ आज्ञा चक्र पर ध्यान लगाना ही ध्यान है।
८. समाधि - अभी हम सुख किसी बाहरी स्त्रोत से तलाशते है; पर हमें यह नहीं मालूम के हम ही आनंद स्वरूप आत्मा है. जब ध्यान पुर्णतः सफल हो जाता है और यह बात हम पूर्णतः जीवन में उतार ले के हम शरीर नहीं
आनंद स्वरूप आत्मा है और परमात्मा से हम रोज़ संपर्क कर सकते है तो घंटों समाधि में निकल जाते है। यही हर मनुष्य का वास्तविक लक्ष्य होता है; जिससे वह भटकता रहता है।

आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति

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